खास हुनर होता है गहरे पानी के इस जीव में, अंधेरे में बिना रोशनी के देख लेता है
Last Updated:February 15, 2025, 09:51 IST
गहरे समुद्र के ओप्लोफोरोइडिया परिवार के झींगे बायोलुमिनेसेंस की मदद से अंधेरे में देखने की खास काबिलियत रखते हैं. ये झींगे खास प्रोटीन ऑपसिंस का उपयोग कर प्रकाश को पहचानते हैं.

गहरे पानी के झींगे वहां के वातावरण में देख सकते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
हाइलाइट्स
- गहरे समुद्र के झींगे बायोलुमिनेसेंस से अंधेरे में देखते हैं
- ये झींगे ऑपसिंस प्रोटीन से प्रकाश पहचानते हैं
- 54 करोड़ साल पहले से बायोलुमिनेसेंस मौजूद है
गहरे पानी के जीवों का अलग ही संसार होता है. यहां जीवन घुप्प अंधेरे, बहुत ही अधिक दबाव और जमा देने वाले तापमान के माहौल में पनपता है. ऐसे कठिन माहौल में रहने वाले जीव वैज्ञानिकों को अपनी अनूठी काबिलियतों से चौंकाते हैं. इन्हीं में से एक ओप्लोफोरोइडिया परिवार के झींगे भी शामिल हैं जिनके बारे में वैज्ञानिकों को पता चला है कि उन्होंने अंधेरे में देखने का खास हुनर विकसित किया है.
बायोलुमिनेसेंस की क्षमता
गहरे समुद्र में प्रकाश का एक ही स्रोत होता है. वह या तो सतह से बहुत ही धुधली रोशनी होती है या फिर किसी जीव में अपने ही अंदर से रोशनी पैदा करने की क्षमता, जिसे बायोलुमिनेसेंस कहते हैं. फ्लोरिडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की शोधकर्तों ने इन्हीं झींगों पर चौंकाने वाली जानकारी हासिल की है.
खास तरह के प्रोटीन
जीवविज्ञानी डेनियेली डेलियो की अगुआई में हुए शोध में खुलासा हुआ है कि ये गहरे समुद्र के झींगे प्रकाश की ऊर्जा को पकड़ने और समझने के लिए खास तरह के प्रोटीन पर निर्भर होते हैं. जहां बहुत से गहरे पानी की जीव शिकार करने, शिकार से बचने और साथी को आकर्षित करने के लिए बायोलुमिनेसेंस पर निर्भर करते हैं. झीगों की खास प्रजाति ने बायोलुमिनेसेंट संकेतों को पकड़ कर उनके अनुसार आवाजाही करते हैं और इसी की मदद से वे खुद को जिंदा भी रख पाते हैं.

ये झींगे उस रोशनी के संकेतों को पहचान लेते हैं जो बायोल्युमिनेसेंस के दूसरे जीव निकालते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
करोड़ों साल पहले से थे ये प्रोटीन
इन झींगों में खास तरह के चमकीले अंग होते हैं जो वे खुद की रक्षा और शिकारियों को धोखा देने के लिए इस्तेमाल करते हैं. इन्हें रोशनी पहचानने वाले कई तरहके प्रोटीन विकसित कर लिए हैं जिससे वे आसपास की बायोलुमिनेसेंट वातावरण की पहचान कर लेते हैं. डिलियो का कहना है कि बायोलुमिनेसेंस उससे भी पहले है जब 54 करोड़ साल पहले जीवों में आंखों का विकास होना शुरू हआ था. ऐसे जीवों को समझ कर उस दौर के जीवन के विकास को समझा जा सकता है.
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शोधकर्ताओं ने इन झीगों में कई तरह के प्रोटीन देखे जिनहें ऑपसिंस कहते हैं. ये इंसानों में भी मिलते हैं. इनकी प्रकाश को समझने में अहम भूमिका होती है. इन्हीं की मदद से ये झींगे भी रंगों, खास तौरसे नीले रंग को पहचानते हैं. इतना ही नहीं जो झींगे ज्यादा ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर का सफर करते हैं, उनमें ऐसे प्रोटीन की विविधता अधिक होती है.
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
February 15, 2025, 09:51 IST
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Source – News18