8 महीने की उम्र तक स्वस्थ था बच्चा, अचानक लगा दुर्लभ बीमारी का पता!

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Last Updated:September 25, 2025, 08:56 IST

न्यू जर्सी (अमेरिका) का 2 वर्षीय जैक ड्र्यूरी जन्म के समय ही डॉक्टरों के लिए चमत्कार साबित हुआ था. 33 हफ्ते में जन्म लेने के बावजूद उसने खुद सांस ली और महज 17 दिनों में घर भी आ गया लेकिन कुछ महीनों बाद जब वह विकास की सामान्य सीढ़ियां पार नहीं कर पाया तो परिवार को चिंता होने लगी. पहले वह नहीं पलटा, न रेंगा और धीरे-धीरे पैरों पर खड़ा होना भी असंभव हो गया. लंबी जांचों के बाद डॉक्टरों ने बताया कि जैक को इन्फैंटाइल न्यूरोएक्सोनल डिस्टॉफी (INAD) नामक दुर्लभ और घातक जेनेटिक बीमारी है.

8 महीने की उम्र तक स्वस्थ था बच्चा, अचानक लगा दुर्लभ बीमारी का पता!बच्चे को बहुत दुर्लभ बीमारी हो गई है. (फोटो: Tim and Kelsey Drury)
दुनिया में इतनी बीमारियां हैं कि कई के बारे में तो लोगों को पूरी जानकारी भी नहीं होती. ऐसी ही एक बीमारी का पता एक अमेरिकी बच्चे के माता-पिता को लगा. जब वो बच्चा 8 महीन का था, तब तक पूरी तरह स्वस्थ था, मगर अचानक मालूम चला कि उसे एक दुर्लभ बीमारी है. अब स्थिति ये आ चुकी है कि उसकी 10 साल की उम्र आते-आते मौत हो सकती है.

न्यू जर्सी (अमेरिका) का 2 वर्षीय जैक ड्र्यूरी जन्म के समय ही डॉक्टरों के लिए चमत्कार साबित हुआ था. 33 हफ्ते में जन्म लेने के बावजूद उसने खुद सांस ली और महज 17 दिनों में घर भी आ गया लेकिन कुछ महीनों बाद जब वह विकास की सामान्य सीढ़ियां पार नहीं कर पाया तो परिवार को चिंता होने लगी. पहले वह नहीं पलटा, न रेंगा और धीरे-धीरे पैरों पर खड़ा होना भी असंभव हो गया. लंबी जांचों के बाद डॉक्टरों ने बताया कि जैक को इन्फैंटाइल न्यूरोएक्सोनल डिस्टॉफी (INAD) नामक दुर्लभ और घातक जेनेटिक बीमारी है. इस रोग में तंत्रिकाओं पर वसा जैसी परत जमने लगती है, जिससे धीरे-धीरे शरीर का नियंत्रण, बोलने-समझने की क्षमता और जीवनशक्ति खत्म हो जाती है. दुनिया में अब तक केवल 250 बच्चों में ही यह बीमारी पाई गई है और ज्यादातर बच्चे 10 साल की उम्र तक जीवित नहीं रह पाते.

इलाज के लिए जुटानी है बड़ी रकम
जैक के माता-पिता, केल्सी और टिम, इस खबर से टूट गए. उन्होंने बेटे की मदद के लिए हरसंभव प्रयास शुरू किए. इसी दौरान उन्हें न्यू जर्सी स्थित INADcure Foundation के बारे में पता चला, जो इस बीमारी के लिए जीन थेरेपी पर काम कर रही है. चूहों पर हुए शुरुआती परीक्षणों में यह थेरेपी काफी कारगर साबित हुई थी. उद्देश्य है कि प्रभावित जीन (PLA2G6) की जगह स्वस्थ जीन बच्चों की कोशिकाओं तक पहुंचाकर रोग की गति को धीमा किया जा सके. हालांकि यह स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन बच्चों को ज्यादा वक्त और बेहतर जीवन दे सकता है. सबसे बड़ी चुनौती थी 4.5 लाख डॉलर (करीब 4 करोड़ रुपये) जुटाने की, ताकि दवा बनाने वाली कंपनी ट्रायल की तैयारी शुरू कर सके. जैक के परिवार ने “जैक्स मिरेकल मिशन” नाम से कैंपेन शुरू किया. शुरुआत में उन्हें लगा कि थोड़ा-बहुत ही चंदा मिलेगा, लेकिन महज 6 दिनों में पूरा फंड इकट्ठा हो गया.

परिवार को दिखी आशा की एक किरण
आम लोगों से लेकर सेलेब्रिटी तक सबने मदद का हाथ बढ़ाया. अब ट्रायल के लिए FDA की मंजूरी का इंतजार है. अगले साल की शुरुआत में ट्रायल होने की उम्मीद है, जिसमें केवल 10 बच्चों को जगह मिलेगी. जैक की उम्र और स्थिति देखते हुए उसके चुने जाने की संभावना है, लेकिन अभी भी यह तय नहीं है. जैक फिलहाल कई बुनियादी क्षमताएं खो चुका है- अब वह खुद को घसीटकर भी नहीं चला पाता और बोतल पकड़ने में कठिनाई होती है. उसके माता-पिता को जल्द-से-जल्द थेरेपी शुरू होने की उम्मीद है, ताकि बीमारी की रफ्तार थोड़ी धीमी हो सके. टिम और केल्सी कहते हैं कि वे अब हर दिन को बेटे के लिए खास बनाने पर ध्यान दे रहे हैं- चाहे वह “बेबी शार्क” गाना हो, डांस पार्टी हो या ढेरों हंसी-मजाक. जैक की यह कहानी इंसानियत की उस खूबसूरत तस्वीर को भी सामने लाती है, जहां अनजान लोग भी एक बच्चे की जिंदगी बचाने के लिए एकजुट हो जाते हैं. जैक भले ही दुर्लभ और घातक बीमारी से लड़ रहा है, लेकिन उसके माता-पिता और समाज की उम्मीदों ने उसकी जिंदगी में एक नई रोशनी जगा दी है.

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Ashutosh Asthana

आशुतोष अस्थाना न्यूज़18 हिन्दी वेबसाइट के ऑफबीट सेक्शन चीफ सब-एडिटर के पद पर कार्यरत हैं. यहां वो दुनिया की अजीबोगरीब खबरें, अनोखे फैक्ट्स और सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग न्यूज़ को कवर करते हैं. आशुतोष को डिजिटल मी…और पढ़ें

आशुतोष अस्थाना न्यूज़18 हिन्दी वेबसाइट के ऑफबीट सेक्शन चीफ सब-एडिटर के पद पर कार्यरत हैं. यहां वो दुनिया की अजीबोगरीब खबरें, अनोखे फैक्ट्स और सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग न्यूज़ को कवर करते हैं. आशुतोष को डिजिटल मी… और पढ़ें

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Source – News18